कुछ वर्ष पहले एक मित्र किसी काम से रंगून गया। उसने शहर के बीच गेस्ट हाउस में एक कमरा लिया। जब काम के विषय में वहां बसे भारतीय लोगों से बातचीत शुरू की तो वे पूछते, "भई कहाँ रुके हो?"
"गार्डन गेस्ट हाउस"
"ओह! वही जहाँ राहुल रुकता है।"
जब यह कई बार सुनने में आया तो उसने एक माननीय व्यापारी से पूछा कि मामला क्या है। गार्डन गेस्ट हाउस एक बहुत ही काम बजट वाली जगह है जहाँ रहने को कमरा और सुबह का नाश्ता मिलता है। आखिर राहुल गांधी किसी अच्छे होटल की बजाय वहां क्यों ठहरेंगे?
मयन्मार ऐसा देश है जो कुछ देर पहले तक सैनिक सरकार के नियंत्रण में था। वहां प्राधिकारी इतने कड़े हैं कि कोई अतिथि किसी के घर बिना अनुमति नहीं ठहर सकता। हर गली में कितने लोग रहते हैं यह उन्हें हर समय ज्ञात होता है और किसी भी समय घर में इसकी जांच हो सकती है। वहां समाज बाकी की दुनिया से कटा सा हुआ है। बाहर की कोई पुस्तकें लाना वर्जित है। बैंकिंग क्षेत्र काफी पहले धराशायी हो चूका है और कोई एटीएम नहीं हैं। जितना भी धन चाहिए, आगंतुकों को नकद लाना पड़ता है। यदि राहुल वास्तव में मयन्मार आते रहे तो दिलचस्प बात थी क्योंकि भारत में इन दौरों की कोई खबर नहीं थी।
उन व्यापारी ने बताया कि राहुल अपने सुरक्षा संगठन और किसी प्रचार के बिना आते हैं। जब एक बार वहां प्राधिकारियों को पता चला की वे आये हुए हैं, तो उन्होंने भारतीय दूतावास में खबर की और पूछा कि क्या आये हुए भारतीय सांसद के लिए सुरक्षा की व्यवस्था की जाय। जवाब आया कि आप अपने काम से काम रखें और उन्हें अपने हाल पर छोड़ दें। सारा इलाका यह जानता है कि जब भी राहुल गांधी आते हैं, तो उनके साथ हर बार एक नयी पोलिनीशियन महिला होती हैं।
यदि राहुल रंगून छुट्टी मनाने आते ही हैं, तो वे ट्रेडर्स होटल में रुक सकते हैं, जो गार्डन गेस्ट हाउस के साथ ही है। पर वहां भारत से आये हुए व्यापारियों की नज़र में आ जायेंगे। मयन्मार गुप्त दौरों पर जाने के लिए अच्छा विकल्प इसलिए भी है क्योंकि वहां कोई खबर फ़ैल नहीं सकती - मीडिआ ही नहीं है। केवल एक अखबार है जो सरकार द्वारा चालित है।
राहुल गांधी को सार्वजनिक हस्ती बनने पर मजबूर तो बना दिया गया है पर उनकी निजी गतिविधियाँ काफी संदेह पैदा करती हैं। वे साल में ७० बार विदेश जाते हैं, जो अपने आप में संदेहजनक नहीं है पर दुबई से आगे अलग पासपोर्ट से जाते हैं, यह बात तो है। उनके नशे के सेवन की आदत को भी छुपाकर रखा गया है। खबर यह फैली कि वे मनमोहन सिंह के फेयरवेल डिनर पर नहीं आये क्योंकि देश में नहीं थे, जबकि देश तो क्या वे तो होश में भी नहीं थे - नशे में थे।
कुछ वर्ष पहले तक ऐसा लगता था कि राहुल गांधी निश्चित रूप से एक दिन भारत के प्रधानमन्त्री होंगे। पर फिर उन्होंने बात करना शुरू कर दिया। ऐसे नाम के साथ, वंश के होते हुए और कांग्रेस पार्टी के उत्कृष्ट वक्ता रोज़ उनकी प्रशंसा में जुटे होते हुए भी राहुल गांधी ने बनी बनायी बाज़ी का बेड़ा गर्क कर दिया। और इसके लिए भारत उनका आभारी है।
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